ऐसे न मनाओ त्यौहार

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This poem is inspired by the blogadda idea : “Godliness in Greenery”

This means that in our endeavor to enjoy festivals, we forget that our celebrations are taking a toll on the environment. The leftover decorations, thermocols,and hazardous materials are a major cause of pollution. We need to be careful while celebrating our festivals.

 

दिल में प्रभु का नाम लेकर,

हमने हर त्यौहार मनाया |

खुश किया उनको दीप जलाकर,

अपना सारा शहर जगमगाया |

 

उत्सव की इस ख़ुशी में,

भूल गए क्या गलती कर बैठे |

उस पल भर की जगमगाहट के पीछे,

सदियों के लिए अँधेरा कर बैठे |

 

जशन मनाकर हमने , मूर्तियां जल  में विसर्जित की  |

ये परेशानी से मुक्ति पाने की प्रथा है ,

पर इस प्रथा के पीछे

असली परेशानियों की वजह है |

 

हमारी  सजावट जब पानी में जा मिली,

ज़हर बन गयी वो नदी |

जिस प्रभु को खुश करना था,

उसके ही जीव जंतुओं की ज़िन्दगी न रही |

 

वो एक सुनहरी मछली

जो सबसे प्यारी थी प्रभु को

उसकी साँसें निकलती देख

क्या खुश हुए होंगे वो?

 

दिवाली का हमने अच्छा उत्सव मनाया,

पर जब पटाखों का धुंआ छाया

जीव जन्तुयों की तो क्या परवाह हमे,

इंसान की सेहत पर भी संकट आया |

 

प्रदुषण से कई  बीमारियां हुई विकसित,

इस बात का हमे अफ़सोस न आया

जिस भगवान को खुश करने चले थे ,

अपने दुखों का दोष उसी पर लगाया |

 

ये बाढ़ , ये बारिश

ये बढ़ता समुद्र तल

इन्हें कुदरत का कहर मान, आँखें बंद कर लेते हैं हम

कभी आँखें खोल कर, सच्चाई को समझें

और अपनी नादानी को हम, कभी तो रोकें

 

‘This post is a part of Write Over the Weekend, an initiative for Indian Bloggers by BlogAdda.’

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